दाता पञ्चदशं रत्नं जामातो दशमो ग्रहः ||
अर्थ
महाभारत हे पाचवा वेद [वेदा इतका पवित्र]आहे. चांगला मुलगा सातवा रस आहे.[अन्नातल्या षड्रसांप्रमाणे सुख देतो]. उदार मनुष्य हे पंधरावे रत्नच आहे. जावई नऊ ग्रहांप्रमाणे दहावा ग्रहच आहे. [मंगळ, शनी वगैरे ग्रहांप्रमाणे त्रास देऊ शकतो.]
Hindi translation:
"महाभारत पाँचवाँ वेद है, जो वेद जितना ही पवित्र है। अच्छा पुत्र सातवाँ रस है, जो भोजन के छह रसों की तरह आनंद देता है। उदार व्यक्ति पंद्रहवाँ रत्न है। दामाद, नौ ग्रहों के समान, मानो दसवाँ ग्रह ही है, जो मंगल और शनि जैसे ग्रहों की भाँति कष्ट भी दे सकता है।"
English translation:
"The Mahabharata is the fifth Veda, as sacred as the Vedas themselves. A good son is like the seventh taste, giving joy just as the six flavors in food do. A generous person is the fifteenth gem. A son-in-law is like the tenth planet among the nine, capable of causing trouble like Mars or Saturn."
3 comments:
अच्छा
यह श्लोक बचपन में स्कूल में पढ़ा हुआ आज भी कंठस्थ स्मृति में यथावत हैं l
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