भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाण भारती।
तस्यां हि काव्यं मधुरं तस्मादपि सुभाषितम्॥

Thursday, August 16, 2012

७५९. भवन्त्वेककार्या भवन्त: समस्ता अध: पातिनीं द्वेषबुद्धिं विहाय |

तथा सर्वदोषा विनाशं प्रयान्तु परा संस्कृति: प्रोन्नतेर्वोऽस्तु हेतु: ||

अर्थ

गर्तेत ढकलणाऱ्या द्वेषबुद्धीचा त्याग करून आपण सर्वं [भारतीय  विकासाच्या] कामात लागा. त्याच प्रमाणे सर्वं दोषांचा नाश होवो [आपल्या] श्रेष्ठ संस्कृतिमुळे तुमची  [सर्वं भारतीयांची] अतिशय भरभराट  होवो.

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