भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाण भारती।
तस्यां हि काव्यं मधुरं तस्मादपि सुभाषितम्॥

Wednesday, March 24, 2010

३. राकारोच्चारमात्रेण मुखान्नीर्याति पातकम् |

३. राकारोच्चारमात्रेण मुखान्नीर्याति पातकम् | पुन: प्रवेशभीत्या एव मकारस्तत् कपाटवत् ||

अर्थ


राम हा उच्चार इतका पवित्र आहे की फक्त राचा उच्चार झाल्यावर पाप तोंडाबाहेर पळून जाते आणि त्याने पुन्हा आत प्रवेश करू नये म्हणून म चा असा उच्चार आहे की दाराच्या फळ्या बंद झाल्याप्रमाणे तोंड बंद होते त्यामुळे पाप परत आत येऊ शकत नाही.

Hindi translation:
"राम" का उच्चारण इतना पवित्र है कि केवल 'रा' का उच्चारण होते ही पाप मुख से बाहर भाग जाता है, और फिर वह दोबारा प्रवेश न करे इसलिए 'म' का ऐसा उच्चारण है कि जैसे दरवाजे की पट बंद हो जाती हैं, वैसे ही मुख बंद हो जाता है और पाप भीतर नहीं आ पाता।

English translation:
The pronunciation of "Ram" is so sacred that when the sound 'Ra' is uttered, sin flees from the mouth. To prevent it from entering again, the sound 'M' closes the lips just like a door shuts, ensuring that sin cannot come back inside.

1 comment:

NARROWGATE said...

निर्याति
पुन:प्रवेशभीत्यैव
Please correct these mistakes.