भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाण भारती।
तस्यां हि काव्यं मधुरं तस्मादपि सुभाषितम्॥

Thursday, April 1, 2010

२०. अजरामरवत प्राज्ञ : विद्यामर्थम्‌ च चिन्तयेत् |

२०. अजरामरवत प्राज्ञ : विद्यामर्थम्‌ च चिन्तयेत्  |
गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत्  ||

अर्थ

बुद्धिमान माणसाने शिक्षण आणि पैसे यांचा विचार आपण चिरंजीव असल्याप्रमाणे करावा आणि मृत्यूने जणू  काही  केस  पकडले आहेत [तर भीतीने जसा माणूस चांगला वागेल तस] हे समजून धर्माचं  आचरण कराव.

Hindi translation:
"बुद्धिमान व्यक्ति को शिक्षा और धन के बारे में वैसे सोचना चाहिए जैसे वह अमर हो, और धर्म का आचरण वैसे करना चाहिए जैसे मृत्यु ने उसके बाल पकड़ लिए हों और भय से वह व्यक्ति अच्छा आचरण करने लगे।"

English translation:
"A wise person should think about education and wealth as if they were to live forever, and should practice righteousness as if death had already seized them by the hair, prompting them to act virtuously out of fear."

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